V.S Awasthi

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सूना हो गया घर

प्रतियोगिता हेतु रचना:-
सूना हो गया घर
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आज वीरान अपना घर देखा
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तिनका- तिनका जोड़ कर अपने सपनों का महल बनाया।
आज उसे वीरान देखकर मेरा दिल भर आया।
बच्चे भी घर को छोड़ उड़ गए जैसे चिड़ियों के बच्चे।
मेरा क्या अब हाल हो रहा भूल गए सब बच्चे।।
आज के युग का मानव जीवन रह गया पंछियों का डेरा।
मां बाप अकेले पड़े हैं घर में बच्चों का विदेश में डेरा।।
मां बाप करें चिंता बच्चों की हर पल याद सताती।
मां जब खाना खाने बैठे बच्चों की मूरत दिख जाती।।
महल बनाया था बच्चों के साथ हम जियें मरेंगे।
नहीं पता था कि मेरे बच्चे साथ में नहीं रहेंगे।।
वीरान देखकर अपने घर को मां बाप का दिल है बोला।
अब तो पास में आओ बच्चों उठ रहा हमारा डोला।।
अब तो अपने दरश दिखा दो मां की अंखियां हैं तरसें।
बिन मौसम बरसात हो रही निर्झर झरनों सी बरसें।।
मेरा घर वीरान हो गया आज कर रहा क्र्न्दन।
तुम ही तो इस घर के मालिक हो इसे बना दो उपवन।।
इस घर की चौखट तुम्हें पुकारे अंगना भी अश्रु बहाता।
आ जाओ मेरे प्यारे बच्चों फिर बचपन तुम्हें बुलाता।।
ये देश तुम्हारा अपना ही है इस देश की रज है चन्दन।
भारत भूमि को नमन करो मां करती तेरा अभिनन्दन।।
विद्या शंकर अवस्थी, "पथिक", कानपुर

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उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति

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